भूविस्थापितों ने कुसमुंडा महाप्रबंधक का पुतला फूंका, कोल सचिव के नाम जिलाधीश को सौंपा ज्ञापन

मदन दास की रिपोर्ट

एसईसीएल कुसमुंडा क्षेत्र के भूविस्थापितों ने रोजगार, मुआवजा और पुनर्वास जैसी पुरानी समस्याओं के समाधान की मांग को लेकर कोल सचिव के नाम जिलाधीश को ज्ञापन सौंपा। प्रदर्शनकारियों का कहना है कि कुसमुंडा के साथ-साथ गेवरा और दीपका क्षेत्र के ग्रामीण भी समान समस्याओं से जूझ रहे हैं। ग्रामीणों का आरोप है कि भूमि अधिग्रहण के बाद शासन द्वारा तय नियमों के तहत लाभ देने के बजाय प्रबंधन केवल उत्खनन कार्य पर ध्यान दे रहा है और समस्याओं के समाधान के प्रति गंभीर नहीं है।ग्रामीणों का कहना है कि बार-बार की अनदेखी के कारण उन्हें धरना, प्रदर्शन और खदान में उत्पादन रोकने जैसे कदम उठाने को मजबूर होना पड़ रहा है। इसी कड़ी में बुधवार को सैकड़ों महिला-पुरुषों ने महाप्रबंधक का पुतला दहन किया। इस दौरान पुलिस और ग्रामीणों के बीच झड़प भी हुई। प्रदर्शनकारियों ने चेतावनी दी कि यदि जल्द समाधान नहीं हुआ तो हड़ताल जैसी बड़ी कार्रवाई की जाएगी।जटराज में जबरन परिसंपत्ति मापन से नाराज ग्रामीणकुसमुंडा परियोजना के ग्राम जटराज में प्रशासन द्वारा जबरन परिसंपत्ति मापन किए जाने से ग्रामीण आक्रोशित हैं। उनका कहना है कि पहले पुनर्वास स्थल का विकास किया जाए, उसके बाद ही मापन की प्रक्रिया शुरू हो। ग्रामीणों ने मांग की कि ओबी डंप को समतल कर बरसात के बाद वहां बसाहट के लिए आवश्यक निर्माण कार्य और मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएं।जिलाधीश के निर्देशों की भी अनदेखीग्रामीणों ने बताया कि 2018 में तत्कालीन जिलाधीश ने कमांडर बिलासपुर को पत्र लिखकर स्पष्ट निर्देश दिए थे कि जिन ग्रामों की भूमि अर्जित की गई है, वहां पहले पुनर्वास स्थल प्रदान किया जाए, फिर उत्खनन कार्य शुरू हो। लेकिन प्रबंधन और प्रशासन दोनों ने इन निर्देशों की अनदेखी की है।ग्रामीणों का महाप्रबंधक से मिलना मुश्किलग्रामीणों ने महाप्रबंधक पर भी गंभीर आरोप लगाए। उनका कहना है कि महाप्रबंधक श्री पाटिल द्वारा मिलने के लिए सोमवार से शुक्रवार तक शाम 4 से 8 बजे का समय तय किया गया है, लेकिन इस दौरान वे प्रायः अनुपस्थित रहते हैं। बाकी समय ग्रामीणों से मिलने से इंकार कर दिया जाता है, जिससे समस्याओं का निराकरण नहीं हो पाता। ग्रामीणों का आरोप है कि ऐसा लगता है जैसे भूमि अधिग्रहण के बाद अब उनकी जरूरत ही महसूस नहीं की जा रही।समस्याओं पर नहीं होती सुनवाई, कोर्ट जाने की सलाहग्रामीणों ने बताया कि रोजगार, मुआवजा और पुनर्वास को लेकर कई बार पत्राचार करने के बावजूद प्रबंधन कोई ठोस कार्रवाई नहीं करता। आंदोलन करने पर ग्रामीणों को जेल भेज दिया जाता है और हर बार न्यायालय जाने की सलाह दी जाती है। जबकि प्रबंधन जानता है कि अधिकांश ग्रामीण कोर्ट की लड़ाई लड़ने में सक्षम नहीं हैं। जिन मामलों में ग्रामीण कोर्ट पहुंचे, वहां ज्यादातर फैसले प्रबंधन के खिलाफ ही आए हैं।ग्रामीणों का कहना है कि प्रबंधन की यह कार्यशैली उनके साथ अन्यायपूर्ण है और उनकी जायज मांगों को टालने की साजिश है। यदि समय रहते समस्याओं का समाधान नहीं किया गया तो आंदोलन और तेज होगा।